प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दो दिन के असम दौरे पर हैं। वे मंगलवार को गुवाहाटी में एडवांटेज असम 2.0 समिट का उद्घाटन करेंगे। यह दो दिन की इंफ्रास्ट्रक्चर और इन्वेस्टमेंट समिट है। विदेश मंत्री एस जयशंकर ने बताया कि
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60 से ज्यादा देशों के राजदूत और मिशन हेड समिट में हिस्सा लेने आ रहे हैं। एक्ट ईस्ट देशों की एडवांटेज असम 2.0 में विशेष रुचि है क्योंकि असम एक्ट ईस्ट से जुड़ा हुआ है।
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वहीं, राज्य के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा ने कहा कि अभी तक हमारे पास 1 लाख करोड़ रुपए के प्रस्ताव हैं। बीते दिन पीएम ने सरूसजाई स्टेडियम में मोइर बिनंदिनी (मेगा झुमोइर) कार्यक्रम में हिस्सा लिया था। असम चाय उद्योग के 200 साल पूरे होने पर यह कार्यक्रम आयोजित किया था। इस दौरान पीएम ने कहा, 'एक समय था जब देश में असम और पूर्वोत्तर के विकास की उपेक्षा की जाती थी। यहां की संस्कृति को भी नजरअंदाज किया जाता था। लेकिन मोदी खुद पूर्वोत्तर की संस्कृति के ब्रांड एंबेसडर बन गए हैं।'
कल पीएम के भाषण की 3 बड़ी बातें...
- मैं पहला प्रधानमंत्री हूं जो असम के काजीरंगा में रुककर दुनिया को इसकी जैव विविधता के बारे में बता रहा हूं। कुछ महीने पहले ही हमने असमिया को शास्त्रीय भाषा का दर्जा दिया है। असम के लोग दशकों से अपनी भाषा के लिए इस सम्मान का इंतजार कर रहे थे।
- भाजपा सरकार असम का विकास कर रही है और यहां के चाय किसानों की सेवा भी कर रही है। बागानों में काम करने वाले श्रमिकों की आय बढ़नी चाहिए। इस दिशा में असम चाय निगम के श्रमिकों के लिए बोनस की भी घोषणा की गई है।
- बागानों में काम करने वाली हमारी बहनें और बेटियां गर्भावस्था के दौरान आय के संकट से जूझती थीं। आज ऐसी लगभग 15 लाख महिलाओं को गर्भावस्था के दौरान 15 हजार रुपए की सहायता दी जा रही है ताकि उन्हें खर्च की चिंता न करनी पड़े।
चाय बागान समुदाय क्या है?
- चाय जनजाति शब्द का मतलब चाय बागानों में काम करने वाले मजदूरों, उनके वंशजों के मल्टी कल्चरल और बहु-जातीय समुदाय से हैं। ये लोग मध्य भारत से आए थे।
- इनमें ज्यादातर लोग झारखंड, ओडिशा, छत्तीसगढ़ और पश्चिम बंगाल से हैं। ये सभी लोग 19वीं सदी में अंग्रेजों के स्थापित किए चाय बागानों में काम करने के लिए असम में बस गए।
- वर्तमान में इन्हीं लोगों की पीढ़ियां मौजूदा चाय बागानों में काम कर रही हैं। जो तिनसुकिया, डिब्रूगढ़, शिवसागर, चराइदेव, गोलाघाट, लखीमपुर, सोनितपुर, उदलगुरी, करीमगंज और बराक घाटी में मौजूद हैं।
- इन लोगों को राज्य में अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) का दर्जा प्राप्त है। हालांकि इन लोगों की मांग ST में शामिल करने की है। कुछ बड़े बागानों के मजदूर जो मुंडा या संथाल जनजातियों से हैं, उन्हें ST का दर्जा प्राप्त है।
- असम डायरेक्टरेट ऑफ टी ड्राइवर एंड आदिवासी वेलफेयर के मुताबिक ये लोग राज्य की आबादी का एक बड़ा हिस्सा हैं। साथ ही चाय उत्पादन में भी प्रमुख भूमिका निभाते हैं। लेकिन वे सामाजिक-आर्थिक रूप से हाशिए पर हैं और राज्य के सबसे गरीब लोगों में से एक हैं।
अब जानिए झुमोइर नृत्य क्या है?
झुमोइर नृत्य में महिलाएं और पुरूष दोनों ही शामिल होते हैं। इसमें महिलाएं नाचती-गाती हैं। पुरुष पारंपरिक वाद्ययंत्र जैसे मातला, ढोल या ढाक (ड्रम), झांझ, बांसुरी और शहनाई बजाते हैं।
नृत्य में शामिल होने वाले हर समुदाय के लोगों का अलग पहनावा होता है। हालांकि ज्यादातर महिलाएं लाल-सफेद साड़ियां पहने होती हैं। डांस के दौरान सभी कंधे से कंधा मिलाकर खड़े होते हैं।
सभी लोग डांस के दौरान एक जैसा पैटर्न फॉलो करते हैं और नागपुरी, खोरठा और कुरमाली में गाने गाते हैं।