जयपुर में बन रहा देश का सबसे बड़ा बोनमैरो ट्रांसप्लांट सेंटर जुलाई-अगस्त तक शुरू हो जाएगा। 50 बेड वाला यह सेंटर स्टेट कैंसर इंस्टीट्यूट में बनकर तैयार हो रहा है। यहां कैंसर मरीजों के लिए बेहद जरूरी बोनमैरो ट्रांसप्लांट मुफ्त में हो सकेगा।
हालांकि अभी एसएमएस (सवाई मानसिंह) हॉस्पिटल में ट्रांसप्लांट हो रहा है। केवल 2 बेड की व्यवस्था है, जहां एक साल से भी लंबी वेटिंग है। ऐसे में कई मरीज तो इंतजार में ही दम तोड़ देते हैं। कई मरीजों को प्राइवेट हॉस्पिटल में 40 लाख रुपए तक खर्च करने पड़ते हैं।
अब तक 15 साल में यहां केवल 150 ट्रांसप्लांट हुए हैं, इसके चालू होने के बाद एक साल में 500 मरीजों का बोनमैरो ट्रांसप्लांट हो सकेगा।
इस सेंटर को लेकर क्या तैयारियां चल रही हैं?
किस तरह से मरीजों को राहत मिलेगी?
अभी साल-साल तक की वेटिंग, कई मरीजों की मौत तक हो जाती है कैंसर रोगियों के लिए बोनमैरो ट्रांसप्लांट एक अहम इलाज है। कैंसर के कारण मरीज को कीमोथेरेपी या रेडिएशन थेरेपी से गुजरना पड़ता है। इस दौरान मरीज के शरीर में कैंसर सेल्स तो खत्म होती हैं, लेकिन साथ-साथ स्टेम सेल्स भी खत्म हो जाती हैं। ये स्टेम सेल्स शरीर की हड्डियों में मौजूद बोनमैरो से बनती हैं। ऐसे में कीमोथेरेपी पूरी होने के बाद स्वस्थ स्टेम सेल्स को व्यक्ति के शरीर में ट्रांसप्लांट किया जाता है। इसे बोनमैरो ट्रांसप्लांट या स्टेम सेल्स ट्रांसप्लांट कहा जाता है।
साल में करीब दो लाख औसत कैंसर के मरीज सामने आते हैं। इनमें बीस से पच्चीस फीसदी मरीज ब्लड कैंसर के होते हैं। इनमें दस से 15 फीसदी मरीज ऐसे होते हैं, जिन्हें ट्रांसप्लांट की जरूरत होती है।
प्रदेश के सरकारी अस्पतालों में केवल एसएमएस में ही बोनमैरो ट्रांसप्लांट की सुविधा है। ऐसे में मरीज को प्राइवेट सेंटर पर जाना पड़ता है। कई मरीजों की तो इंतजार में मौत तक हो जाती है।
कैंसर अस्पताल के अधीक्षक डॉ. संदीप जसूजा ने बताया- एसएमएस अस्पताल में प्रदेश का पहला बोनमैरो ट्रांसप्लांट साल 2009 में किया गया था। करीब 3 साल तक ट्रांसप्लांट सेंटर बंद रहा था। फिर 2012 से शुरू किया गया। लेकिन बेड कम होने के चलते अब तक 150 बोनमैरो ट्रांसप्लांट ही हो पाए हैं। बोनमैरो ट्रांसप्लांट एक लंबा इलाज है। एक मरीज को डेढ़ महीने तक भर्ती रहना पड़ता है। उसके बाद ही दूसरे मरीज का नंबर आता है।
प्राइवेट हॉस्पिटल में 30 से 40 लाख का खर्च, नए सेंटर से मरीजों को ये होंगे फायदे सरकारी अस्पताल में लंबी वेटिंग के चलते मरीज को प्राइवेट अस्पतालों में 40 लाख रुपए तक खर्च करने पड़ते हैं। कैंसर के अलग-अलग प्रकार और उसके ट्रीटमेंट के आधार पर यह खर्च तय होता है। गरीब या मध्यम तबके के लोग प्राइवेट सेंटर तक भी नहीं पहुंच पाते।
ऐसे में मरीजों को इस सेंटर को शुरू करने के बाद फायदा मिलेगा…
1.वेटिंग कम, जल्दी इलाज की उम्मीद : एसएमएस अस्पताल में ट्रांसप्लांट यूनिट में दो बेड और लंबी वेटिंग है। अगर लगातार भी मरीजों का ट्रांसप्लांट किया जाए तो साल में 15-20 ट्रांसप्लांट ही हो सकते हैं। कैंसर अस्पताल में बनने वाली बोनमैरो ट्रांसप्लांट यूनिट 50 बेड की होगी। ऐसे में एक साथ एक बार में 50 मरीजों को भर्ती कर उनका ट्रीटमेंट किया जा सकेगा। इससे वेटिंग घटेगी, साल में आने वाला नंबर कुछ महीने में ही आएगा।
2. 40 लाख नहीं लगेंगे, मुफ्त में होगा इलाज : प्राइवेट सेंटर की तरह लाखों रुपए का खर्च बचेगा। ये इलाज सरकार की आयुष्मान योजना में शामिल है। ऐसे में निशुल्क ट्रांसप्लांट होता है। जिन लोगों के पास आयुष्मान कार्ड नहीं है, राजस्थान के जनाधार के जरिए भी निशुल्क इलाज का लाभ ले सकते हैं। वहीं इम्यूनोथेरेपी के दौरान 4 लाख की कीमत के महंगे इंजेक्शन भी लगते हैं, वह भी फ्री लगाए जाएंगे।
3. आधुनिक तकनीक से इलाज : ट्रांसप्लांट में आधुनिक तकनीक से इलाज किया जाएगा। कार्टिसेल्स तकनीक, नई तकनीक है। इसका इस्तेमाल करना भी शुरू कर दिया गया है। वर्ल्ड क्लास दवाएं सेंटर पर मिलेगी। दवाओं की कमी नहीं रहेगी। मरीजों की विशेष निगरानी रहेगी। डॉ.संदीप जसूजा ने बताया कि सेंटर हेपा फिल्टर युक्त रहेगा। जिससे एयर इंफेक्शन का खतरा नहीं होगा। साथ ही सेंटर में पॉजिटिव एयर प्रेशर मेंटेन रहेगा जिससे कि बाहर की दूषित हवा अंदर न आ सके।
4. बोनमैरो ट्रांसप्लांट की सक्सेस रेट बढ़ेगी : बोनमैरो ट्रांसप्लांट में सबसे जरूरी होता है, जब डोनर का बोनमैरो मैच हो। ह्यूमन ल्यूकोसाइट एंटीजन (HLA) का मैच होना भी जरूरी होता है। एचएलए मैच होने होने की संभावना मरीज के सगे भाई-बहन में 25% और माता-पिता में 3 फीसदी ही होती है। एचएलए शत प्रतिशत मैच होने ट्रांसप्लांट किया जा सकता है। डेडिकेटेड सेंटर में अत्याधुनिक तकनीक से फुल और हाफ मैच, दोनों ही स्थितियों में ट्रांसप्लांट सक्सेस रेट बढ़ने की संभावना है।
10 डॉक्टर्स समेत 70 का स्टाफ, उपकरणों के लिए जल्द होंगे टेंडर डॉ. संदीप जसूजा ने बताया कि 118 करोड़ की लागत से अस्पताल की तीसरी मंजिल से लेकर 6 मंजिल तक निर्माण काम चल रहा है। इस सेंटर का काम साल 2023 में शुरू हुआ था। अभी इसकी टाइमलाइन जुलाई-अगस्त तक दी हुई है। उपकरणों की खरीद के लिए जल्द ही टेंडर किए जाएंगे।
वहीं यूनिट में स्टाफ के लिए भी डिमांड की गई है। 70 के स्टाफ की हमारी डिमांड है। इनमें 10 डॉक्टर रहेंगे और बाकी नर्सिंग और सपोर्टिंग स्टाफ शामिल होगा। शुरू होने के बाद साल में करीब पांच 500 मरीजों का बोनमैरो ट्रांसप्लांट यहां पर हो सकेगा।